Wednesday, February 1, 2012

Dilli

चार साल की मिठास से थकी हुई ज़बान पर नमक की तरह है
झुलसाती गर्मी में चले जाने वाले बादल के साए की तरह है 
बस घर है
तसल्ली तब भी कितनी है