Monday, November 1, 2010

11/01 8:36 am Pacific Time

चाह से जेब अभी भी उतनी ही भरी है जितनी सालों पहले थी.
निराशाओं से खेलते-खेलते हाथ इतना सूज गया है कि जेब में घुसता ही नहीं है.

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